ll निःशेष ll
ll निःशेष ll
मै सत्य बात बोलू तो गाली l
तु गाली भी दो तो सुभाषित है ll
तु मूत्र को पवित्र बोलो तो प्राशित है l
मै पाणी को छु लु तो ग्रासित है ll
तु भगवान का धंदा करो तो पुण्य l
मै भुके पेट रोटी चुराऊ तो शासित है ll
तु गंदगी करे तो भी पूज्य है l
मै उठाऊ फिर भी तुच्छ हैll
तू राजा का बेटा तुने हक से लिया शिक्षण l
मै सारथी का कर्ण,करू बराबरी तो शासन है ll
तु कुछ लिखो तो कहलाते पंडित l
मै सिखु- लिखु तो,क्यू होता धर्म खंडित ये ll
मै आगे बढू तो क्यू होता क्रुद्ध तू l
मुझे मालूम तेरे नजर मे,मै क्षुद्र हु ll
अरे सिखने दे मुझे करणे दे सिद्ध तू l
करना फिर बराबरी समज आयेगा,मै भी बुद्ध हु ll
एक ही माँ हम दोनो कि,कभी उसने ना किया भेद l
फिर क्यू मेरे नाम से पैदा होता तेरे मन मे मतभेद है ll
मुरदे गाडू,हल चलाऊ,कचरा उठाऊ इस समाजमंदिर का मै चक्र चलाऊ l
ताकद मुझमे भी है इतनी इस मंदिर का कलश हिलाऊ ll
प्यार से देख दुनिया,ना प्यार कभी आरक्षित हैl
खुद के अंदर झाक पगले, तू ही जातीभेद से ग्रासित है ll
इतनी ना दे गाली,मत कर इतना द्वेष l
मान बदलती हवा को,नहीं तो कुछ ना रहेगा तेरा शेष ll
- विशाल यशवंत फटांगरे
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